Wednesday, January 10, 2007

क्यों जिन्दगी को ऐसा बना दिया

क्यों मेरी जिन्दगी को ऐसा बना दिया
दुख के कफन में मुझे जिंदा जला दिया
मोहब्बत के ख्वाब में हकीकत जल गयी
सुकुन के ख्वाब मे सबकुछ गवां दिया
क्या रात और क्या दिन सब एक ही से लगते हैं
रोते-रोते तेरी याद में खुद खो भूला दिया
बीते पल का हिसाब रखते हैं नये पल गम ही देते हैं
बीते पल को ही खुद का नसीब बना दिया
.................................Shubhashish(2001)

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