Wednesday, January 10, 2007

मजबूरीयों में बधे

अश्क भी अब सहमें से पलकों मे छुपे रहते हैं
मेरी तरह ये भी तनहाई और घुटन सहते हैं
डरतें है कि कहीं देख ना ले इन्हे कोई
निकलना चाहते हैं पर मजबूरीयों में बधे रहते हैं
.........................................Shubhashish(1999)

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