मोहब्बत की मेरे इम्तेहां हो गई
सारी बातें खत्म बस यहां हो गई
खुद बरबाद हो गये जिनकी खातिर
बातें अब ये उनके लिये बचपना हो गयीं
.................................. Shubhashish(2005)
Sunday, January 28, 2007
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"शेर"॰॰॰ कहने को बस चंद पंक्तिया, पर अपने आप में ना जाने कितनी गहराईयों को छुपाये हुये हैं। शेरो-शायरी को देखने का नज़रिया लोगों का भले ही कुछ भी हो पर ये लिखने वाले के दिल की वो छटपटाहट होती है जिसे वो रात-दिन महसुस करता है। और यही बेचैनी जब शब्दों का रूप ले के उसके कलम से निकलती है तो पढने वाले के दिल को भी झकझोर जाती है और छोड जाती है अपने पीछे कई सवाल जिनके जावाब ॰॰॰॰ शायद कहीं नही होते॰॰॰॰
3 comments:
its good yaar
thanx krish
Bahut din ho gaye....kuch naya likh daaliye.....
awaiting a new shayari/kavita....
Cheerz
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