अब चाहता हूँ तो जिन्दगी रुसवाई नही देती
माना अन्धेरे मे अपनी परछाई दिखाई नही देती
जो अब तक करते थे बातें इशारों पे जान देने की
क्या अब उन्हें हमारी आवाज भी सुनाई नहीं देती
....................................... Shubhashish(2005)
Friday, February 02, 2007
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