Sunday, January 28, 2007

इम्तेहां हो गई

मोहब्बत की मेरे इम्तेहां हो गई
सारी बातें खत्म बस यहां हो गई
खुद बरबाद हो गये जिनकी खातिर
बातें अब ये उनके लिये बचपना हो गयीं
.................................. Shubhashish(2005)

एतबार की जरुरत किसको नहीं

एतबार की जरुरत किसको नहीं होती
एक यार की जरुरत किसको नहीं होती
मिलता नहीं कोइ हमसफर साथ निभाने के लिये
वरना प्यार की जरुरत किसको नहीं होती
............................... Shubhashish(2005)

कौन मेरा साथ निभायेगा

ढूढता था कि कौन मेरा साथ निभायेगा साये की तरह
सोचता था कि कौन मेरे जज्बातों को समझेगा यहाँ
पर जब खयाल आयाउनका जिन्होने हमे कभी अकेला नही छोडा
तो लगा इन ' तन्हाइयों ' से अच्छा साथी मुझे मिलेगा कहाँ
........................................ Shubhashish(2005)

कभी लडखडा के तो देख

यूँ तो हर चाहने वाला तेरे सपने सजाता निगाहों मे है
पर कभी सोचा कि ये फुल बिखेरता कौन तेरी राहों में है
तुझे बस अपनी ओर बुलाते हैं ये जमाने भर के हाथ
पर कभी लडखडा के तो देख तु गिरती किसकी बाहों मे है
................................ Shubhashish(2005)

प्यार सामने होता है

प्यार सामने होता है उससे इकरार सामने होता है
हम जिससे मोहब्बत करते हैं उसका इन्तजार सामने होता है
इस दबे हुए दिल मे भी तब आँसू कि लडी लग जाती है
जब किसी गैर कि बाहों मे अपना यार सामने होता है
................................. Shubhashish(2005)

कल फिर

कल फिर कुछ पहलू अनछुए से रह गये
कल फिर कुछ वादे अनकहे से रह गये
शायद मै जानता था कि ये आखिरी मुलाकात है
तभी कई अरमान दिल में दबे रह गये
.......................................... Shubhashish(2005)

Friday, January 26, 2007

याद मे ज़िन्दगी गुजर जाये

बस यूँ ही उनकी याद मे ज़िन्दगी गुजर जाये
जिन्दगी की ये नाव कही तो जाके ठहर जाये
उम्मीद थी इस जिंदगी से वफा की, तुम रहे जब तक
पर अब डरता हूँ कही मौत भी बेवफाई ना कर जाये
............................................. Shubhashish(2005)

तेरे लिये मिट जायें

दर्द उठायेंगे तुझे खुशीयाँ दिलाने क लिए
जल जायेंगे तेरी राहों से अन्धेरा मिटाने के लिए
तेरे लिये मिट जायें, तु ना जाने तो क्या
काँटे तो होते ही हैं फूलों को बचाने के लिए
...................................... Shubhashish(2004)

Wednesday, January 17, 2007

पा लिया है सब कुछ

बस खुशीयाँ ही पायी हैं तेरे इश्क की छाँव में
कई मंजिले पायी हमने इस इश्क की राहो में
एक प्यार तेरा पाकर लगता है पा लिया है सब कुछ
बस आखिरी ख्वाहीश है दम निकले तेरी बाँहो मे
................................ Shubhashish(2004)

हालात

हालातो ने सुनहरे ख्वाब खोने ही नहीं दिया
उन इश्क यादों ने फिर कभी सोने ही नहीं दिया
उम्र गुजार देते उनके साथ बिताये कुछ लम्हों क सहारे
पर किस्मत ने हमें साथ जी भर के रोने भी नहीं दिया
............................... Shubhashish(2004)

Monday, January 15, 2007

My Dearest Lines

खुदा ये कैसा फैसला तेरा
क्या मेरी मोहब्बत थी झुठी
उनको उनका प्यार मिला
मुझसे किस्मत क्यों रूठी
वो नही मिले क्यों मुझको
इस पर जवाब खुदा का आया
तुने सच्चे दिल से उसकी खुशीयाँ माँगी
तभी तो उसे उसका प्यार मिल पाया
...............................Shubhshish(2004)

तुझे भूल नहीं पायेंगे

खुदा ने किस्मत दी मत गुरूर करना
अगर हो सके तो हमे खुद से दूर करना
हम तो चाह कर भी तुझे भूल नहीं पायेंगे
पर तुम हमें भूलने की कोशिश जरूर करना
................Shubhashish(2004)

तुने मेरा दिल दुखाया

कितनी बार तुने मेरा दिल दुखाया
पर मैने तुझे कभी रोका नही था
मैने तुझे दिल से चाहा था
ये जज्बात का कोई झोंका नहीं था
जब तुमने ठुकरा दिया तो लगा
बस कुछ ही दिनो की बात है
पर तुम जुदा हो क इतना याद आओगे
दिल ने शायद कभी सोचा नहीं था
............................ Shbuhashish(2004)

जो राह दिखाइ है तुने

जो राह दिखाइ है तुने उसी पर जाउगां
ये सच है कि मै तुझे कभी भूल नहीं पाउगां
पर अब जब बख्से है तुने मेरी आँखों को आँसु ही
तो पुरी जिंदगी मै आसुओं का साथ ही निभाउगां
........................Shubhashish(2004)

गर आँसू तेरी आँख का होता

गर आँसू तेरी आँख का होता
गिरता गाल को चुमते हुए
फिर गिर के तेरे होठों पर
फना हो जाता वहीं हॅसते हुए
पर
जो तुम होती मेरी आँख का आसु
भले गुजरती उम्रगम सह-सह कर
तुझे खो ना दूं कही इस डर से
मै ना रोता ज़िदगी भर
................... Shubhashish(2004)

आज हम खामोश हैं

इस कदर चाहा है तुझ कि खुद प्यार से महरूम हो गये
तुम्हारे पास आने के लिये हम खुद से दूर हो गये
आज हम खामोश हैं तुझसे कुछ बोलते नहीं
क्या करें, तेरी ठोकरों से हम चूर-चूर हो गये
....................................Shubhashish(2004)

जीने का बहाना

तुमसे मिल के खुशी का कोई ठिकाना नहीं होता
तेरे दिल के सिवा मेरा कहीं आशियानां नहीं होता
ये दुबारा मिलना कि उम्मीद है जो मुझे जिन्दा रखती है
वरना तुझसे बिछड के जीने का कोई बहाना नहीं होता
........................................... Shubhashish(2004)

तुने अनदेखा किया

देख के भी तुने कितनी बार अनदेखा किया
पर दिल आखों मे आंसू भर के भी मुस्कूराया है
तेरी चाहत मे खुद की नज़रों से गिर गये पर
तुझे हमेशा अपनी पलकों पर बिठाया है
मेरे ज़ज़्बात भी मेरे दिल को कचोटते है
पर तुझे मेरे दिल कि परवाह कहाँ
कभी अपना दोस्त भी ना समझा तुने
पर हमने हर बार अपना फर्ज निभाया है
.......................... Shubhashish(2004)

खुशी चाहता है

कभी गम ना देना उसे जिंदगी मे जो तुम्हारे लिये सिर्फ खुशी चाहता है
जो पलको पे हज़ारो आँसु उठा के होठों पर तुम्हारे हँसी चाहता है
इससे ज्यादा प्यार क्या कोई करेगा तुम्ही ये बता दो जरा सोच के
अपनी मनहूसीयत का साया ना तुझ पे पडे इसलिये नही बनना तुम्हे हमनशीं चाहता है
.....................Shubhashish(2004)

तेरा नाम दिल मे गुंजता है

क्यों तेरा नाम दिल मे सुबह शाम गुंजता है
क्यों तेरे सिवा मुझे कुछ और नहीं सूझता है
ये सवाल जब भी पुछता हूं तो जवाब मिलता है
क्या कभी चाँद भी रौशनी को भूलता है
.................................... Shubhashish(2004)

Saturday, January 13, 2007

वो तो हमारे सबकुछ

जिदंगी खत्म होने को है पर जिया कुछ भी नहीं
गम तो बहुत मिले पर खुशीयां कुछ भी नहीं
फिर भी कोई शिकवा नहीं इस के सिवा जिंदगी से
वो तो हमारे सबकुछ हो गये पर हम उनके कुछ भी नहीं
............................................ Shubhashish(2004)

एक तरफा प्यार

अपने जज्बात छिपा पाना कितना मुश्किल होता है
अपने हालात बता पाना कितना मुश्किल होता है
कितना दर्द स उठता है जब लगता है तेरा प्यार नहीं मिल पायेगा
फिर भी एक तरफा प्यार किये जाना कितना मुश्किल होता है
..................................... Shubhashish(2004)

खुशीयों के चंद पल देदो

क्या मुझे एक अच्छा कल नहीं दे सकते
क्या मेरी उलझनो को हल नही दे सकते
कुछ ज्यादा तो मांगता ही नहीं मै तुमसे
पर क्या मायुस जिंदगी में खुशीयों के चंद पल नही दे सकते
.............................. Shubhashish(2004)

क्यों सोचता हूँ मै

हर कोई हर किसी के लिये इतना खास नहीं होता
हर कोई हर किसी के इतना पास नहीं होता
क्यों सोचता हूँ मै तुझे हर पल, हर वक्त
क्या इससे भी तुझे कुछ एहसास नहीं होता

खैऱ एहसास को ना होने दो
मेरे दिल को तो अपने पास रहने दो
चाहे तोड दो अब तो ये तुम्हारा है
पर टुकडो को तो अपने साथ रहने दो
................................ Shubhashish(2004)

ख्वाब मे भी मत सोचना

चाहत तुम्हे भी सताये तो खुद को मत रोकना
बात कभी जुबाँ पे आ जाये तो खुद को मत रोकना
कोई मुझसे अच्छा लगे तो हो जाओ उसकी लेकिन
मुझसे ज्यादा कोई चाहेगा तुम्हे, ये ख्वाब मे भी मत सोचना
.................................. Shubhashish(2004)

जीने के लिए जरूरी

ना तुम मेरी हो ना मेरी किसमत मे तुम्हारा साथ है
तुम मेरी हो नहीं सकती इस बात का भी मुझे एहसास है
पर ये ना कहो कि तुम्हे पाने की कोशिश भी छोड दूँ
मेरे जीने के लिए जरूरी तुम्हे पाने की आस है
............................. Shubhashish(2004)

उम्मीद कैसे छोड दूँ

नदीयों की धाराओं को कैसे मोड दूँ
पलको के ख्वाब को कैसे तोड दूँ
तु मुझे चाहेगी, इतनी तो उम्मीद भी नही करता
पर तुझे पाने की उम्मीद कैसे मैं छोड दूँ
................................ Shubhashish(2003)

ठुकरा दो पर एक बार सोच लेना

तु जीने की आखिरी आस है तुझे मै भूल कहाँ पाउंगा
तु भी ना मीली तो शायद लाश ही बन जाउंगा
ठुकराते हो तो ठुकरा दो पर एक बार जरूर सोच लेना
अगर तुमने भी ठुकरा दिया तो फिर मैं कहाँ जाउंगा
............................................ Shubhashish(2003)

कोई खास

हर किसी को किसी की तलाश है
हर कोई ढुंढता अपने लिए कोई खास है
साफ नजर आ जायेगा जरा गौर से देखो
शायद वो कहीं तुम्हारे ही आस-पास है
............................ Shubhashish(2003)

इजहार नहीं कर सकता ?

ऐसा नहीं की मैं अपनी मुहब्बत को बयान नहीं कर सकता
पर खुद के लिए मैं तुझे परेशान नही कर सकता
जानता हूँ कि मेरी किस्मत मे तो सिर्फ आँसू ही है
पर अपनी खुशीयों के लिए मैं तेरी खुशीयां बेजान नही कर सकता
................................... Shubhashish(2003)

सपनो पे जिंदगी

सपनों की खुशीयाँ टिकती नहीं
सपनों की तकलीफें मिटती नहीं
हमसे मिलके ये कहना छोड दोगे कि
सपनो पे जिंदगी कटती नहीं
...................... Shubhashish(2003)

जिन्दा

रोने के लिये आँखों मे आँसु नहीं
जीने के लिये दिल मे अरमान नहीं
चलता-फिर देख लोग तो जिन्दा समझे हैं
लेकिन धडकने के लिए दिल मे जान नहीं
............................ Shubhashish(2003)

हकीकत

ख्वाब और हकीकत मे बडा फासला है
केवल ख्वाब देखने से किसे क्या मिला है
गल्ती हमारी थी जो किसी ख्वाब को हकीकत समझा
खुद पे शर्मिदां हूँ तुमसे काहाँ गिला है
................................. Shubhashish(2003)

हर बार

हर मोड पर खुद को अकेला पाते हैं
हर बार खुद से कुछ वादा कर जाते हैं
हर बार लगता है शायद ये आखरी बार है
पर हर बार हम जीतते-जीतते हार जाते हैं
................................ Shubhashish(2003)

Wednesday, January 10, 2007

सीख लेते हैं लोग

शीशे की तरह टुट जाना हर ख्वाब का अंजाम है
मुरझा के गिर जाना हर फूल का अंजाम है
चीर देती हैं लहरें चट्टानों का भी सीना
सीख लेते हैं लोग गम के साये मे जीना
कर के आसुओं में दफन अपने दिल क अरमान को
लोग जीते हैं ऐसे जैसे जिंदगी पे एहसान हो
................................ Shubhashish(2001)

क्यों जिन्दगी को ऐसा बना दिया

क्यों मेरी जिन्दगी को ऐसा बना दिया
दुख के कफन में मुझे जिंदा जला दिया
मोहब्बत के ख्वाब में हकीकत जल गयी
सुकुन के ख्वाब मे सबकुछ गवां दिया
क्या रात और क्या दिन सब एक ही से लगते हैं
रोते-रोते तेरी याद में खुद खो भूला दिया
बीते पल का हिसाब रखते हैं नये पल गम ही देते हैं
बीते पल को ही खुद का नसीब बना दिया
.................................Shubhashish(2001)

कितना इन्तजार

इतना ना तडपाओ कि दर्द के भी आँसू छलक जायें
ये सजा मत दो प्यार मे कि हम दर्द की परिभाषा बन जायें
युँ जला कर, गम दे कर, तडपा कर,
इतना मत इन्तजार करवाओ कि आँखें समय का पैमाना बन जायें
......................................... Shubhashish(2000)

गर था ले रहा तु इम्तेहा

अब टुट के गिर गया हू
तो क्यों नहीं फिर उठा रहा
गर था ले रहा तु इम्तेहा तो
अब जीत का एहसास क्यों नहीं दिला रहा
हम तो हार गये
और कर रहे हैं इल्तजा
तो तु मेरे पास फिर
क्यों नहीं आ रहा

मेरी सासें हो रही हैं धीरे
खत्म हो रही है धडकन
क्यों नहीं तु मेरी
सदा सुन पा रहा
हम तो पागल से हो गये हैं
अपना सब कुछ गवां कर
अब क्यों नहीं
तु मुझे अपना रहा
............... Shubhashish(2000)

हमारा मुकद्दर

जिंदगी की परिस्थितियाँ मजबूर करतीं हैं अगर
तो आ छोड दे हम ये जहाँ
मिल जायें मौत से हम अगर
तो मौत ही होगी हमारा मुकद्दर
............................. Shubhashish(2000)

मुझे तेरी जरूरत है

इस कदर उबे हैं जिंदगी से कि अब खुद से नफरत है
सब कुछ लुटने के बाद भी दिल को अभी हसरत है
अभी भी इसे उम्मीद है कि तुझे पा लेगा ये
मेरी हर आह कहती है मुझे तेरी जरूरत है
............................................. Shubhashish(2000)

आसुओं सगं गुजरती रात

दर्द बन कर दफन हो गयी सीने मे हर बात
ना समझा सके हम अपनी मजबूरीयाँ और हालात
वक्त ने इस लायक भी नहीं छोडा की कोई शिकवा करें
बिन नींद आसुओं के सगं गुजरती है हर रात
.......................................... Shubhashish(2000)

मजबूरीयों में बधे

अश्क भी अब सहमें से पलकों मे छुपे रहते हैं
मेरी तरह ये भी तनहाई और घुटन सहते हैं
डरतें है कि कहीं देख ना ले इन्हे कोई
निकलना चाहते हैं पर मजबूरीयों में बधे रहते हैं
.........................................Shubhashish(1999)

Tuesday, January 09, 2007

कौन समझाये

जिसके लिये हमने हर खुशीयों को छोड दिया
उसने हमारी खशीयों के लिये हमें छोड दिया
उसे कैसे समझायें कि हमारी हर खुशी थी उससे
उसने अन्जाने मे हमारा दिल हमारे लिये ही तोड दिया
.......................................... Shubhashish(1999)

भीगी आँखें

आज भी आखें नम कर जाती हैं वो यादें
तडपा कर तन्हा कर जाती हैं वो बातें
उस समय की मुस्कान आज हमारी हंसी उडाती है
बस तुझे ही पुकारती हैं हमारी सहमी और भीगी आँखें
...................................................... Shubhashish(1999)

नजराना

अब तक तेरे प्यार मे सिर्फ गम ही मिले हैं
पर तेरा नजराना समझ उसे दामन में कैद किये हैं
आँसु जो बेताब हैं आखो से निकलने के लिए
उसे प्यार की निशानी मान आँखों मे रोके हुये हैं
............................................... Shubhashish(1999)

तुझे पाने कि तमन्ना

करवटें बदलते रहते हैं लेकिन नींद नही आती
आखों क सामने बस तु ही तु छा जाती
समझाया हमने भी बहुत अपने दिल को लेकिन
तुझे पाने कि तमन्ना दिल से निकल ही नही पाती
............................................Shubhashish(1999)

कुछ मजबूरीयाँ

करते है तुझसे प्यार बहुत फिर भी कुछ ना कहते हैं
है खबर तुझे क्या कि किस तरह हम दर्द दिल का सहते हैं
कुछ मजबूरीयाँ हैं जिससे हैं बाहुत मजबुर से हम
वरना तुझे बतला देते कि कैसे दिल मे रहते हैं
...............................................Shubhashish(1999)

गुमसुम सी तनहाइयों मे

गुमसुम सी तनहाइयों मे जैसे कोई छू जाता है
अपने यहीं पे होने का एहसास दिलाता है
तडप उठता है बेचैन दिल तुम से मिलने के लिये
आँसु आँखों मे छूपाये फिर सहम जाता है
..............................Shubhashish(1998)

चांद की जगह तेरा चेहरा

कितना अच्छा होता जो चांद की जगह तेरा चेहरा आता
रात मे भी आकाश में दिन से ज्यादा उजाला छा जाता
मेरी ये आँखें न सुखती बिन तेरे तुझे देखते के लिये
रात को बेचैन होने के बजाय तेरी आँखों में ही खो जाता
......................................Shubhashish(1998)

पुकारा तो साथ दे देगे

कभी तुमने पुकारा किसी राह पर तो साथ दे देगे
कभी किया तुमने जो इशारा तो जान दे देंगे
जान से भी ज्यादा चाहेंगे तुम्हे हमेशा और हमेशा
पर कभी चाहकर भी अब तझे आवाज ना देंगे
.......................................Shubhashish(1998)

बेताब धडकन

कुछ कहना तो चाहा था निगाहों ने
पर दर्द रह गया था बस इन आहों में
इन्तजार मे बेताब है एक-एक धडकन
चाहता हूँ फिर मिलूँ जिंदगी की राहों में
.................................................Shubhashish(1998)

सपना क्यों

क्यों होता है एहसास दुखों का
दिल का भारी बोज नही होता हल्का
दिल क्यों देखता है ऐसा सपना सुख का
जो बन जाता है दुखडा ही दिल का

...........................................Shubhashish(1998)

वक्त पर एहसान

तेरे बिना जीना वक्त पर एहसान है
तुझ बिन ये जिंदगी दो पल की मेहमान है
तुझे देखने से आँखों मिलता है सुकून
तुझ पे निसार तो हमारी जान है
.................................. Shubhashish(1998)

नजदीकी का एहसास

मन को है तुझे देखने की प्यास
तूझ बिन बेचैन है मेरी हर एक सांस
उस एक क्षण के लिए छोड॰ सकता हूं ये जहाँ
जिस पल मे हो तेरी नजदीकी का एहसास
............................................. Shubhashish(1998)